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आओ बसंत

आओ बसंत, छाओ बसंत

पुलकित हो मन, आनंद मगन

 

फूलों के रंग, परागों के संग

सरोवरों में बन कर कमल

 

ले कर सुगन्ध, आंगन भवन

बहकी चले, शीतल पवन

 

हर ओर करें भंवरे गुंजन

बागों में हो कोयल के स्वर

 

फूटे कपोल, सुन्दर चमन

सरसों के खेत, मंगल शगुन

 

तोतों के झुंड, दिखते गगन

बौरों में छिप बैठे अनंग

 

धरती सजे बनकर दुल्हन

उत्सव में हो हर एक कण

6 thoughts on “आओ बसंत”

  1. इस भागदौड़ की जिंदगी में वसंत का मजा ही कम पड़ गया है। खूबसूरत कविता वसन्त की तरह।👌👌

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