“आंटी मन्नू है क्या ?”फोन के दूसरी ओर से अमर की आवाज़ सुनकर मन्नू की मम्मी चौंक गई।
“बेटा, वो तो तुम्हारे पास आने के लिए सु….” बोलते बोलते मन्नू की मम्मी रूक गई। उन्हें मन्नू सामने से आता दिख गया था।
“एक मिनट, बेटा मन्नू तो वापस आ रहा है। मैं तुमसे बाद में बात करती हूँ” कह कर मन्नू की मम्मी ने फोन काट दिया।
मन्नू बड़े ही उदास मन से घर की ओर कदम बढ़ा रहा था। उसे लग रहा था कि उसके पैरों में कोई भारी से पत्थर बंधे हो जो उसकी गति को अवरोधित कर रहें हो। मन तो उसका फूट फूट कर रोने का कर रहा था मगर सभ्यता के मारे आँसू आँखों के कोरों पर आ कर रुक गए थे। मई की गरमी में भी आँसुओं को वाष्पित करने की क्षमता नहीं था।
सुबह वो कितने उत्साह के साथ घर से निकला था। आज एक कार्यालय में उसका इंटरव्यू था जिसके लिए वह बहुत ही उत्साहित था। साक्षात्कार तो उसका शाम तीन बजे था किंतु वह तैयार हो कर सुबह दस बजे ही घर से निकल गया था। अपना पूरा बैग उसने बड़ी सावधानी से लगाया था। सारे ज़रूरी कागज़ात एक फोल्डर में डालकर बैग में रख लिए थे। एक लैपटाप, कुछ पुस्तकें आदि उसने आवश्यकतानुसार सामान बैग में रख लिया था। घर से निकलते ही उसे मैट्रो पकड़ कर राजीव चौक पहुँचना था। मैट्रो की भीड़ को ध्यान में रख कर उसने अपना मोबाइल भी बैग में ही रख दिया था। सबका आशीर्वाद लेकर वह घर से निकला था।
सेक्टर 62 से मैट्रो स्टेशन के उद्घाटन से मन्नू को बहुत खुशी हुई थी। उसे अब घर से निकलते ही मैट्रो मिल जाती थी जिससे आने जाने में सुविधा हो गई थी। मन्नू सीधा मैट्रो पकड़ कर राजीव चौक पहुँच गया। वैसे तो विश्वविद्यालय स्टेशन के लिए यहाँ से उसे ब्लू लाईन बदल कर येलो लाईन पकड़नी थी मगर इस समय उसे अपने दोस्त अमर के घर जाना था। मन्नू की तैयारी और आत्मविश्वास तो पूरा था किन्तु फिर भी आखिरी समय में चलते चलते जितना भी तत्व ग्रहण कर सके, उसके लिए मन्नू और अमर ने एक कृत्रिम साक्षात्कार के द्वारा तैयारी करनी थी। इस प्रकार दोनों को अपनी अपनी शंकाओं का निवारण करके कुछ देर बाद साथ ही जाना था।
बस मैट्रो से उतर कर गेट तक आते आते मन्नू के होश उड़ गए। अरे ! वह बैग कहाँ गया जो उसके हाथ में था।
राजीव चौक सबसे व्यस्त स्टेशनों में से एक है, जो दिल्ली के केंद्र में कनॉट प्लेस की सेवा देता है। इस स्टेशन पर हर दिन लगभग 5 लाख यात्रियों का आवागमन होता है। न जाने इतनी भीड़ में किसी ने उसके हाथ से बैग छीना था या उसके हाथ से बैग फिसल गया था या क्या हुआ उसे कुछ पता ना चला। उसे तो अचानक से एक बड़ा झटका लगा। इतनी बड़ी हानि इतने नाजुक समय पर ! वो प्लेट फार्म पर वापिस उस रास्ते से गया जिससे आया था। मगर उसे कहीं न कुछ दिखा न कोई संकेत मिला। उसके पैर की ज़मीन खिसक गई और आँखों के सामने अंधेरा छा गया। कहाँ जाए ? क्या करे ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। अमर के पास जाने का अब उसका मन गवारा नहीं था। उसने वापिस मैट्रो पकड़ी और अपने घर की तरफ चल दिया।
“अरे! मन्नू! क्या हुआ ?” मम्मी ने उसके उड़े होश देख कर हैरानी से पूछा।
पापा ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे पास रखी कुर्सी पर बैठाया, मम्मी को इशारा करके उसे पानी देने के लिए कहा। वो कोई अनहोनी ताड़ चुके थे और मन्नू को हौंसला देने के लिए अपना मोर्चा संभाल चुके थे।
अपनेपन की गरमाहट ने मन्नू के भीतर जमी बर्फ को पिघाल दिया था। अपने मम्मी पापा के पास आकर वो एक नदी की तरह बह गया। उसने धीरे धीरे सारी आप बीती बताई।
“अब क्या होगा पापा?” उसने निराशा से पूछा!
“कितनी मुश्किल से कोई इन्टरव्यू कॉल आती है। तीन बजे इन्टरव्यू था और मेरे सारे डॉक्यूमेंट्स बैग के साथ खो गए! मैं क्या करूँ ? इतनी जल्दी कुछ नहीं हो सकता। आप जानते हो न पापा ये इन्टरव्यू मेरे लिए कितना इम्पॉरटेंट था।” मन्नू भाव में बोले जा रहा था।
कैसे हो गया!
क्यों हो गया!
मेरे साथ ही क्यों!
जैसे सवाल मन्नू के दिमाग में हथौड़े की तरह पड़ रहे थे।
“देखो बेटा” उसे पापा का स्वर सुनाई दिया। “पहले तो तुम अपनी घबराहट से बाहर आओ। हार से पहले, पूरा हारने तक हम कोई रास्ता बूझने की कोशिश करते हैं। हम सोचते हैं कि क्या कर सकते हैं।”
“क्या करेंगे पापा? डुप्लिकेट सर्टिफिकेट्स और डॉक्यूमेंट्स इक्कठा करने में तो बहुत समय लग जाएगा और इन्टरव्यू तो आज ही शाम को है।”
“लैट्स सी” पापा ने मम्मी से कहा और मम्मी को बोला “इसे कोल्ड काफी बना कर पिलाओ।” और खुद गहरी विचार की मुद्रा में बैठ गए। मन्नू भी सामान्य होने की कोशिश कर रहा था हालांकि यह उसके लिए संभव न था।
“बेटा चलो! तैयार हो जाओ! हम इंटरव्यू के लिए जाएंगे।” थोड़ी देर बाद पापा ने मौन तोड़ा।
“पापा लेकिन …..”
“वहां जाकर देखते हैं क्या होता है। अभी तो समय शेष है। डूबता हुआ व्यक्ति सांस रुकने से पहले हाथ पैर मारना नहीं छोड़ता।”
पापा की बात सुनकर मन्नू हाथ पैर धोने लगा। मुँह पर दिखने वाली निराशा को उसने झटकने की कोशिश करी, मन में भी रोशनी की लौ जगाने का उद्यम किया।
दोनों मिश्रित मनोभाव के साथ कार्यालय पहुँचे। कार्यालय के गेट के बाहर ही गार्ड ने उन्हें रोक दिया। मन्नू के पापा ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन उसने उन्हें स्पष्ट शब्दों में बता दिया कि इस समय केवल उन्हें ही भीतर जाने की अनुमति है जो अपना इंटरव्यू लैटर दिखाएंगे। मन्नू फिर रूआँसा सा हो गया। कुछ कैंडीडेट्स आ रहे थे। कुछ के अभिभावक भी शायद साथ आए होंगे जो बिल्डिंग के बाहर ही खड़े थे। उन्हें देख कर और घटना को भांप कर कुछ लोग उनके पास आ गए। उन्होंने जानना चाहा कि क्या हुआ। मन्नू के पापा सारी घटना बताने लगे। मन्नू स्वयं को कोसने लगा कि इतने लोगों के मध्य वह लापरवाह सिद्ध हो रहा है। लोगों के मन में भी इस घटना से सहानुभूति उत्पन्न हुई। कई लोग सांत्वना देने लगे। इतने में एक वृद्ध वहाँ आए और बोले, “बेटा मैं जरा चाय पीने चला गया था। तुम आ गए, चलो अच्छा हुआ। मैं इसी उम्मीद से यहाँ तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था कि शायद तुम आ जाओ” यह कहते कहते उन्होंने एक फोल्डर मन्नू की तरफ बढ़ाया।
अरे! यह तो वही फोल्डर है जो मन्नू घर से तैयार कर के चला था। “ये कैसे?” मन्नू ने अचानक से आई प्रसन्नता से झूलते हुए पूछा।
“बेटा 1.30 बजे करीब मुझे यह फोल्डर राजीव चौक मैट्रो स्टेशन के बाहर पड़ा मिला था। मैंने इसे खोल कर देखा तो इसमें किसी के डॉक्यूमेंट्स के साथ इंटरव्यू लैटर दिखा। इंटरव्यू लैटर से मुझे तुम्हारा मोबाइल नम्बर मिला और शक्ल का अनुमान लगा। मैंने कई फोन मिलाए लेकिन हर बार फोन स्विच आफ आया। मैं समझ सकता था कि तुम कितने परेशान होंगे लेकिन मेरे पास तुम्हें संपर्क करने का कोई साधन नहीं थ। इतना समय भी नहीं था कि मैं तुम्हारे घर इसे लौटाने आँऊ तो तुम इन्टरव्यू देने पहुँच सको। अतः मैंने यहाँ आ कर तुम्हारी प्रतीक्षा करने का निश्चय किया। मैं भगवान से मना रहा था कि तुम यहाँ आ जाओ। ”
सब लोग उस वृद्ध की तारीफ करने लगे। मन्नू के पापा ने मन्नू से कहा “बेटा, तुम अंदर जाओ और पूरे अत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू देना।”
सबने उसे शुभकामनाएं दी। मन्नू का मन तो पूरी बात जानने का था लेकिन समय की नज़ाकत देखते हुए वह अंदर चला गया। इक्कठे हुए लोग आपस में और वृद्ध से बातें करने लगे। सब बातों का निश्कर्ष यह निकला कि किसी ने मन्नू से बैग छीन लिया होगा और जब खोल कर डॉक्यूमेंट्स देखे होंगे तो फोल्डर फैंक दिया होगा और शेष सामान अपने पास रख लिया होगा। फोल्डर इन सज्जन को मिला होगा और इनके नेक दिल ने यहाँ आने का निर्णय लिया होगा।
खैर! मन्नू को हार से पहले जीतने का मौका मिल गया था।